
प्रचार प्रसार से कोसों दूर रहकर मौन साधक की तरह की थी हिंदी साहित्य की सेवा, पुत्री मंदाकिनी भी है श्रेष्ठ नाट्यकर्मी, आकाशवाणी एनाउंसर
( RNE रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस ने तय किया था कि साहित्यकार के जन्मदिन पर हम उसकी जानकारी अपने पाठकों को देंगे। ठीक इसी तरह दिवंगत साहित्यकारों के याद दिवस पर भी हम उनके बारे में पाठकों को उनके साहित्य कर्म के बारे में बतायेंगे। इस श्रृंखला में केवल वही रचनाकार रहेंगे जिन्होंने गंभीर सृजन धर्म निभाया है। उसी कड़ी में यह विशेष सामग्री है। – संपादक )
अभिषेक पुरोहित
RNE Special.
साहित्य में मौन साधकों का अपना एक बड़ा तबका है। ये लोग साहित्य में ग्लैमर के लिए नहीं आते। अपना सामाजिक व नैतिक दायित्त्व समझकर वे कलम उठाते है। उनको आज के बाजारु साहित्यकारों की तरह न तो खबरों में छपने के शौक होता है, न ही वे पुरस्कारों के पीछे दौड़ते है। उनको प्रचार – प्रसार की कोई भूख नहीं होती। इस कड़ी में आदर के साथ जिनका नाम लिया जाता है वे है स्व महेश चंद्र जोशी।
आज महेश जी की याद का दिन है। उन्होंने बीकानेर में रहकर रचनाकर्म किया। गोष्ठियों, आयोजनों में वे कम ही जाते थे, उनको प्रचार का शौक नहीं था। वे अपना काम चुपचाप करते थे। वे कम बोलते थे मगर उनका लिखा बहुत बोलता था। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में उनका रचनाकर्म बोलता है।
एक लेखक अपने जीवन में कितनी कहानियां लिखता है, शायद 100 से अधिक नहीं। पर महेश जी ने अपने जीवन में 200 से अधिक कहानियां लिखी। ये किसी बड़े साहित्यिक चमत्कार से कम नहीं है। विरले ही ऐसे लेखक होते है जो इतनी कहानियां लिखते है।
जानकारों के अनुसार उन्होंने कई कहानियां अपने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर लिखी और उन कहानियों ने जीवन के अर्थ खोजने में पाठकों के सामने कई प्रश्न छोड़े। उनके पास पाठकों के पत्र भी खूब आते थे। उस समय पत्र लिखने का चलन था। पाठकों के ये पत्र इस बात के गवाह थे कि उनकी कहानियां राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती थी। ‘ अन्यथा ‘ जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में भी उनकी कहानी छपी। हंस, जनसत्ता, कथा रंग, रविवार, आजकल, सारिका जैसी पत्रिकाओं में अक्सर उनकी कहानियां दिखती थी।
उन पर एक लघु शोध प्रबंध भी लिखा गया। उनको सितार वादन का भी शौक था। यह शौक उनको अपनी पत्नी के कारण हुआ। वे संगीत भारती में डॉ मुरारी शर्मा से सितार सीखने जाया करती थी, तब उन्होंने भी सितार पर हाथ आजमाने आरम्भ कर दिये।
मां और पिता जब साहित्य व संस्कृति से हो तो फिर पुत्री भी उसी राह पर चलती है। उनकी पुत्री मंदाकिनी जोशी आज देश की प्रतिष्ठित रंगकर्मी है। आकाशवाणी में उद्घोषिका है। बड़े बड़े नाटकों में उसने मुख्य भूमिका निभाई है।
RNE रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस परिवार उनकी याद के दिन उन्हें नमन करता है।